पूर्वजन्म विषय पर अमेरिका में इयान स्टीवंस उसी प्रकार का शोध भारत में डॉ. सतवंत पसरिया ने भी किया है
(Research on Reincarnation by Dr Ian Stevension in USA, And a similar research conducted by Dr. Satvant Pasria in India)
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म विषय पर अमेरिका में इयान स्टीवंस ने जिस तरह से शोध किया है, ठीक उसी प्रकार का शोध भारत में डॉ. सतवंत पसरिया ने भी किया है। बेंगलोर की 'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजÓ में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत ने ईस्वी सन् १९७३ से लेकर अभी तक भारत में प्रकाश में आई पुनर्जन्म के करीब ५०० घटनाओं का संकलन किया है। इसे एक पुस्तक का आकार दिया गया है, जिसका नाम है 'क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशन: एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडियाÓ। उल्लेखनीय है कि बेंगलोर की ये महिला वैज्ञानिक ने अपने शोध के लिए अमेरिका की वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. इयान स्टिवेंस के साथ ही काम किया है। इस किताब की प्रस्तावना भी प्रो. स्टिवेंस ने ही लिखी है। वे कहते हैं कि जो इस तरह के किस्सों को पहली बार पढ़ रहे होंगे, उनके लिए इसमें शामिल घटनाओं को सच मानने में बहुत मुश्किल होगी, इसके बाद भी पाठक यह विश्वास रखें कि इस पुस्तक में जो भी घटनाएँ शामिल की गई हैं, वे सभी काफी सावधानीपूर्वक और प्रामाणिकता के साथ लिखी गई हैं।
उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बालक अपने पिछले जन्म का ज्ञान रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है।
उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है, ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए। डॉ. सतवंत के अनुसार जिन बच्चों को अपना पूर्वजन्म याद रहता है, वे ३ से ८ वर्ष तक की उम्र के होते हैं। डॉ. सतवंत ने पहली बार १९७३ में वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ साइकियाट्री इयान स्टिवंस के बारे में जाना, फिर उनके साथ काम किया।
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अपने दो पूर्व जन्मों की पूरी याद
यह घटना मध्प्रदेश के टीकमग$ढ जिले की है जहां १९४८ में एक जिला शिक्षा अधिकारी के यहां एक ल$डकी ने जन्म लिया जिसका नाम स्वर्णलता मिश्र रखा गया। जब बच्ची सा$ढे तीन साल की हुई तो उसने कहना शुरू कर दिया कि मेरा घर कटनी में है जहां मेरे माता पिता और चार भाई रहते हैं। तुम लोग मुझे वहां जाने दो। उसने अपने पूर्व जन्म के पिता जो कटनी के एक प्रतिष्ठित जमींदार थे, और भाइयों के नाम, मकान का पता जो कटनी रेलवे स्टेशन के सामने है, की पूरी पहचान और भाइयों के नाम भी बताये। उसने अपना पहले का नाम विद्या पाठक बताया और कहा कि उसकी शादी मैहर में पांडेय परिवार में हुई थी जहां उसके दो बेटे और एक बेटी रहती हैं तथा उनके नाम भी बताये। उसने यह भी बताया कि उसकी मृत्यु ३१ वर्ष की आयु में हृदयाघात से हुई थी। बेटी की परत-दर-परत पुनर्जन्म की स्मृतियों को सुनकर पिता चकित रह गये। उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह इन सब की सत्यता की पुष्टि करेंगे। समय निकाल कर बच्ची के पिता कटनी जा पहुंचे और खोजबीन की तो आश्चर्य चकित रह गये। बेटी द्वारा बताई गई सारी बातें अक्षरश: सच निकली। ऐसा ही मेैर में भी हुआ जहां उसके पूर्व जन्म के ससुरालीजन रहते थे। तब उन्हें स्वीकार करना प$डा कि यह सचमुच ही पुनर्जन्म का मामला है। यह सोच कर कि इन सब बातों को लेकर अफवाहों का दौर चल प$डेगा, इसलिये उन्होंने इस मामले को सख्ती से दबा दिया और परिजनों से इस संबंध में किसी भी प्रकार की चर्चा करने से मनाही कर दी। जब बच्ची छतरपुर में जहां उसके पिता का तबादला हो गया था, पाठशाला प$ढने के लिये जाने लगी तो वहां अपनी सहपठियों को अपनी पूर्व जन्म की बातें बतलाने लगी। यह बात धीरे-धीरे पूरे शहर में फैल गई तो लोग इस अद्भुत बालिका को ब$डी उत्सुकता से देखने आने लगे। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री पø द्वारिका प्रसाद मिश्र छतरपुर आये तो उन्होंने भी यह बात सुनी और बच्ची के घर पहुंच गये। उन्होने स्वर्णलता से मुलाकात की और कई सवाल किये जिस से वह संतुष्ट हुए। तब मुख्यमंत्री ने राजस्थान के परामनोवैज्ञानिक डाø एचø बनर्जी को परीक्षण हेतु भेजा। जांच के बाद डाø बनर्जी ने बताया कि यह पुर्नजन्म की सत्य घटना है और इस का कारण दिमाग में अतिरिक्त याददाश्त है जो धीरे-धीरे विस्मृत हो जायेगी। जब कटनी में स्वर्णलता के पूर्व जन्म के रिश्तेदारों ने सुना तो इसको मनग$ढंत माना लेकिन सही घटना को कब तक नकारते। सच्चाई जानने के लिये बच्ची का एक भाई छतरपुर अपनी पहचान छिपा कर उसके घर जा पहुंचा। उसने बच्ची के पिता से कहा कि वह इलाहाबाद से आया है और स्वर्णलता से मिलना चाहता है। उसी समय बच्ची जो मन्दिर गई हुई थी, वापस घर आई और मेहमान को देखकर चौंक उठी और प्रसन्न हो कर बोली- अरे बाबू , तुम कब आये। जब पिता ने कहा कि तुम इन्हें कैसे जानती हो, ये तो इलाहाबाद से आये हैं। स्वर्णलता ने कहा कि नहीं ये कटनी से आये हैं और मेरे ब$डे भाई बाबू हैं। यह सुनकर बाबू ने जिसका नाम हरिहर प्रसाद था, बहिन के पांव छू लिये और सच को स्वीकार किया। बच्ची ने भाई से समस्त परिवार वालों का हालचाल पूछा तथा कई ऐसी बातें भी पूछी जिन को केवल वह और हरि हर प्रसाद ही जानते थे। सब बातों को सुनकर उस को पूर्ण विश्वास हो गया कि स्वर्णलता उनके पूर्व जन्म की बहिन विद्या ही है। कुछ समय बाद जब पिता उसको लेकर कटनी गये तो स्वर्णलता ने अपने आप अपना घर ढूंढ लिया जबकि उससे पहले वह वहां कभी नहीं गई थी। वहां उसने अपने पिता तथा पूर्व जन्म के अन्य तीनों भाइयों को पहचान लिया। वह जैसे इनको भी पूर्वजन्म में संबोधित करती थी, ठीक वैसे ही किया जिसे देखकर सब को पूर्ण विश्वास हो गया कि विद्या ने ही स्वर्णलता के रूप में पुनर्जन्म लिया है। उसने अपने भाइयों से मैहर का हालचाल भी पूछा जहां उसकी पूर्वजन्म की ससुराल थी। वहां का कुशल क्षेम जान कर वह ब$डी प्रसन्न हुई और मैहर जाने की जिद करने लगी। उस समय न ले जाकर बाद में पिता उसको मैहर ले गये। वहां भी उसने अपने पूर्व जन्म के पति को तीनों बेटे-बेटियों को पहचान लिया। उसने तीनों बच्चों को मां के समान प्यार किया। वे लोग भी उसको देखकर बहुत ही खुश हुए। एक दिन जब स्वर्णलता ५ साल की थी तो वह असमिया भाषा में गाना गाने लगी और असमिया बोली बोलने लगी। पिता के पूछने पर उसने बताया कि उसका एक जन्म तो कटनी में हुआ था तथा एक जन्म आसाम के सिलहठ में हुआ। तब मेरा नाम कमलेश गोस्वामी था तथा मैं चार भाई बहनों में सबसे ब$डी थी। उसने उस जन्म के मां बाप के नाम भी बताये और कहा कि तब उसकी मृत्यु ८ साल की आयु में कार दुर्घटना में हो गई थी जब वह शाला जा रही थी। बच्ची को आसाम की बोली, गीत एवं नृत्य आते थे जो गुजरते वक्त के साथ धुंधले होते चले गये लेकिन दूसरे जन्म की यादें रह गई थी और वह उस जन्म के स्वजनों से मिलने के लिये बेताब रहने लगी परन्तु वह क्षेत्र देश के बंटवारे के साथ पूर्वी पाकिस्तान अब बंगला देश में चला गया जिस से उन लोगों से मिलना नहीं हो सका। स्वर्णलता प$ढने में बहुत होशियार थी। उसकी बुद्वि तीव्र थी। उसने एम. एस. सी वनस्पति शास्त्र में किया और पर्यावरण एवं प्रदूषण में पी. एच. डी. कर के वनस्पति शास्त्र की प्राध्यापिका हो गई। वह भाग्यवान भी थी। उसकी शादी एक उच्च अधिकारी से हो गई जो बाद में जिलाधीश हो गये। उसके दो बेटे हो गये और सुखी वैवाहिक जीवन मिला। स्वर्णलता के केस की जांच वर्जीनिया विश्वविद्यालय यू. एस. ए. के परामनोचिकित्सा विभाग के संचालक प्रोø डाø इवान स्टीवेंसन ने की जिन्होंने विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में पूर्वजन्म की लगभग ६० घटनाएं एकत्र की हैं। उन्होंने स्वर्णलता के पहले जन्म के बारे में पूरी छानबीन की और सही पाया। इन घटनाओं से एक बात स्पष्ट होती है कि ल$डकी सदा ल$डकी पैदा होती है और ल$डका ल$डका ही जन्म लेता है। स्वर्णलता तीनों जन्मों में ल$डकी पैदा हुई और उच्च ब्राहमण कुल में जन्मी। उसका पहला जन्म कटनी म. प्र. के प्रतिष्ठित पाठक परिवार में हुआ, दूसरा जन्म सिलहर आसम के प्रतिष्ठित गोस्वामी परिवार में हुआ और तीसरा वर्तमान जन्म टीकमग$ढ म. प्र. जिला के प्रतिष्ठित मिश्र परिवार में हुआ। यह निश्चित नहीं है कि स्वर्णलता का आसाम वाले परिवार से जिस से मिलने को वह ब$डी बेताब रहती थी, संपर्क हुआ या नहीं। पूर्व जन्मों की यादें उन लोगों को रहती हैं जिन की मृत्यु किसी उत्तेजनात्मक आवेशग्रस्त मन:स्थिति में हुई है जैसे दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, प्रतिशोध, कातरता, मोहग्रस्तता आदि। ऐसे विक्षुब्ध घटनाक्रम प्राणी की चेतना पर गहरा प्रभाव डालते हैं और वे उद्वेग नये जन्म में भी स्मृति पटल पर उभरते रहते हैं। अधिक प्यार या अधिक द्वेष जिन से रहा हो, वे लोग विशेष रूप से याद आते हैं। भय, आशंका, अभिरूचि, बुद्घिमता, कला कौशल आदि की भी पिछली छाप बनी रहती है। आकृति की बनावट और शरीर पर जहां तहां पाये जाने वाले विशेष चिन्ह भी अगले जन्म में उसी प्रकार पाये जाते हैं।
SWARNLATA MISHRA (Reincarnation in India )
One of the most famous of case studies is that of Swarnlata Mishra. She was born to an intellectual and prosperous family in Pradesh in India 1948. When she was just three years old and travelling with her father past the town of Katni more than 100 miles from her home, she suddenly pointed and asked the driver to turn down a road to "my house", and suggested they could get a better cup of tea there than they could on the road.
Soon after, she related more details of her life in Katni, all of which were written down by her father. She said her name was Biya Pathak, and that she had two sons. She gave details of the house: it was white with black doors fitted with iron bars; four rooms were stuccoed, but other parts were less finished; the front floor was of stone slabs. She located the house in Zhurkutia, a district of Katni; behind the house was a girl's school, in front was a railway line, and lime furnaces were visible from the house. She added that the family had a motor car (a very rare item in India in the 1950's, and especially before Swarnlata was born). Swarnlata said Biya died of a "pain in her throat", and was treated by Dr. S. C. Bhabrat in Jabalpur. She also remembered an incident at a wedding when she and a friend had difficulty finding a latrine.
In the spring of 1959, when Swarnlata was 10 years old, news of the case reached Professor Sri H. N. Banerjee, an Indian researcher of paranormal phenomenon and colleague of Stevenson. Banerjee took the notes her father made and traveled to Katni to determine if Swarnlata's memories could be verified. Using nothing more than the description that Swarnlata had given, he found the house, despite the house having been enlarged and improved since 1939 when Biya died. It belonged to the Pathak's (a common name in India), a wealthy, prominent family, with extensive business interests. The lime furnaces were on land adjoining the property; the girls school was 100 yards behind the Pathak's property, but not visible from the front.
He interviewed the family and verified everything Swarnlata had said. Biya Pathak had died in 1939 leaving behind a grieving husband, two young sons, and many younger brothers. These Pathaks had never heard of the Mishra family, who lived a hundred miles away; the Mishra's had no knowledge of the Pathak family.
In the summer of 1959, Biya's husband, son, and eldest brother journeyed to the town of Chhatarpur, the town where Swarnlata now lived, to test Swarnlata's memory. They did not reveal their identities or purpose to others in the town, but enlisted nine townsmen to accompany them to the Mishar home, where they arrived unannounced.
Swarnlata immediately recognized her brother and called him "Babu", Biya's pet name for him. Stevenson gives only the barest facts, but I can imagine the emotions ran high at this point. Imagine how Babu felt to be recognized immediately by his dead sister reborn. Ten-year-old Swarnlata went around the room looking at each man in turn; some she identified as men she knew from her town, some were strangers to her. Then she came to Sri Chintamini Pandey, Biya's husband. Swarnlata lowered her eyes, looked bashful as Hindu wives do in the presence of their husbands and spoke his name. Stevenson says nothing of Sri Pandey's reaction at finding his wife after twenty years.
Swarnlata also correctly identified her son from her past life, Murli, who was 13 years old when Biya died. But Murli schemed to mislead her, and "for almost twenty-four hours insisted against her objections that he was not Murli, but someone else." Murli had also brought along a friend and tried to mislead Swarnlata once again by insisting he was Naresh, Biya's other son, who was about the same age as this friend. Swarnlata insisted just as strongly that he was a stranger. Finally, Swarnlata reminded Sri Pandey that he had stolen 1200 rupees Biya kept in a box. Sri Pandey admitted to the truth of this private fact that only he and his wife had known.
A few weeks later, Swarnlata's father took her to Katni to visit the home and town where Biya lived and died. Upon arriving she immediately noticed and remarked about the changes to the house. She asked about the parapet at the back of the house, a veranda, and the neem tree that used to grow in the compound; all had been removed since Biya's death. She identified Biya's room and the room in which she had died. She recognized one of Biya's brothers and correctly identified him as her second brother. She did the same for her third and fourth brother, the wife of the younger brother, the son of the second brother calling him by his pet name Baboo. Later Swarnlata was presented to a room full of strangers and asked whom she recognized. She correctly picked out her husband's cousin, the wife of Biya's brother-in-law, and a midwife whom she identified not by her current name, but by a name she had used when Biya was alive.
Biya's son Murli, in another test, introduced Swarnlata to a man he called a new friend, Bhola. Swarnlata insisted correctly that this man was actually Biya's second son, Naresh. In another test, Biya's youngest brother tried to trap Swarnlata by saying that Biya had lost her teeth; Swarnlata did not fall for this, and went on to say that Biya had gold fillings in her front teeth a fact that the brothers had forgotten and were forced to confirm by consulting with their wives, who reminded them that what Swarnlata said was true.
Biyas dialect was distinctly different than that of the Pradesh�s and remarkably similar to the Pathaks. She was familiar with intimate names and family secrets, and remembered even marriage relationships, old servants, and friends. It was as if, her memory was frozen at the time of Biya's death; Swarnlata knew nothing about the Pathak family that had happened since 1939.
In the following years, Swarnlata visited the Pathak family at regular intervals. Stevenson investigated the case in 1961, witnessing one of these visits. He observed the loving relationship between Swarnlata and the other members of the family. They all accepted her as Biya reborn. Swarnlata behaved appropriately reserved towards Biya's elders, but when alone with Biya's sons, she was relaxed and playful as a mother would be, behavior that would otherwise be totally inappropriate in India for a 10-year-old girl in the company of unrelated men in their mid-thirties.
The Pathak brothers and Swarnlata observed the Hindu custom of Rakhi, in which brothers and sisters annually renew their devotion to each other by exchanging gifts. In fact the Pathak brothers were distressed and angry one year when Swarnlata missed the ceremony; they felt that because she had lived with them for 40 years and with the Mishras for only 10 years that they had a greater claim on her. As evidence of how strongly the Pathaks believed that Swarnlata was their Biya, they admitted that they had changed their views of reincarnation upon meeting Swarnlata and accepting her as Biya reborn (the Pathaks, because of their status and wealth, emulated Western ideas and had not believed in reincarnation before this happened). Swarnlata's father, Sri Mishra, also accepted the truth of Swarnlata's past identity: years later, when it came time for Swarnlata to marry he consulted with the Pathaks about the choice of a husband for her.
Stevenson visited her in later years and corresponded with her for ten years after this case was investigated. He reports that she grew up normally, received an advanced degree in botany, and got married. She said that sometimes, when she reminisced about her happy life in Katni, her eyes brimmed with tears and, for a moment, she wished she could return to the wealth and life of Biya. But her loyalty to the Mishra family was undivided and, except for the regular visits to Katni, she went about the business of growing into a beautiful young woman, accepting fully her station in this life.
Currently Swarnlata Mishra is in Bhopal and retired as Principal (A Botaniest) from a Government College and was married to an IAS officer.
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