पुनर्जन्म का सच (ReBirth / ReIncarnation Miracle Truth)
इंद्रदेव चौंका। ‘कौन गणोश?’ उससे पूछा। ‘अरे, वही। आपके पूर्व जन्म का भाई गणोश।’
‘वह तो आजकल आता नहीं है। बहुत दिन हो गये।’
‘कभी चिट्ठी-पत्री भी होती है, आप दोनों में या नहीं?’
‘कई बार लिखा भी, पर वह जवाब देता नहीं है। इसलिए छोड़ दिया लिखना।’
‘आपने कभी उसका जिक्र मुझसे किया नहीं? इतने दिन हम लोग साथ रहे, तब भी?’
‘तु तो कभी पुछबे नै कैल्हो हल त की कहतियो हल?’
बाबू यमुना प्रसाद सिंह, मलाही (बाढ़) में होम्योपैथी के नामी डॉक्टर थे। उनका बड़ा लड़का था, मेरा यह मित्र इंद्रदेव और दूसरा इससे छोटा एक और। 1944 के हैजे की महामारी में वह चल बसा था। इसलिए दिमाग से हट गया था। इंद्रदेव उस दिन अपनी बहन की ससुराल चमका जा रहा था। नाव पर उसने देखा कि एक लड़का उसकी ओर लगातार ध्यानपूर्वक देख रहा है। इसने समझा कि बहन की ससुराल में कोई नाते में होगा। गंगा नदी पार होने पर इसने उतरकर उससे उसका परिचय पूछा, ‘आप कौन हैं?’‘चलिए अभी, उस स्कूल तक। वहीं बताऊंगा’। दियारे के पास उस स्कूल की उस दिन उस सूनी बिल्डिंग में लड़का इसे लिवा ले गया और सूने कमरे में पूछा,‘जानते हैं, मैं आपका छोटा भाई हूं- गणोश, जो हैजे में मर गया था?’
इंद्रदेव ठिठका। घबराया। फिर सोचकर पूछा, ‘कैसे मानूं? कैसे विश्वास करूं कि आप मेरे भाई हैं और हैजे में मर गये थे?’ लड़के ने बताया। अमुक दीदी मर गयी थी। अमुक बच गयी थी। इस प्रकार उसने पूरी-पूरी सभी घटनाएं बता दीं। अब इंद्रदेव को विश्वास हो गया और दोनों एक-दूसरे से लिपटकर खूब रोये। इंद्रदेव ने रोते-ही-रोते उसे अपने घर चलने का आग्रह किया तो उसने बताया कि उसके नए जन्म के दो भाई और हैं, जो उसे बाढ़ से यहां आने ही नहीं देते हैं। खैर, एक दिन निश्चित हुआ बाढ़ आने का। उस समय केवल एक ही गाड़ी मननपुर से बाढ़ आती थी- मुगलसराय पैसेंजर। उस दिन इस सूचना पर अति उत्सुक बाबू यमुना प्रसाद सिंह अपने बहुत-से लोगों के साथ बाढ़ स्टेशन आये और अलग-अलग रहकर गणोश की सूचनाओं की पुष्टि करने लगे। गाड़ी से उतरकर इंद्रदेव को देखते ही वह दौड़कर आया और प्लेटफॉर्म पर घू म-घूमकर अपने पिता आदि को पहचान लिया, पैर छूकर पण्राम किया। फिर उससे अपने घर चलने के लिए कहा गया। चला तो, लेकिन कुछ दूर जाकर कई सड़कों को देख घबरा गया। फिर बताने पर वह तेजी से चलकर अपने घर पहुंचा और भीतर जाकर मां-बहनों और दूसरे लोगों को पहचानकर नाम ले- लेकर पैर छू-छूकर पण्राम किया। सबों ने उसे सीने से लगाया और मिलकर सभी आनंद से भावविभोर होकर खूब रोये। फिर अपने खेत को पहचानने गणोश दौड़कर गया और वहां पूछा, ‘फलां भैया (हलवाहा) कहां है?’ अब सारी बातें स्पष्ट हो गयी थीं। अंत में तय हुआ कि गणोश बाढ़ में ही रहकर पढ़ाई पूरी करेगा। मननपुर (गणोश के पुनर्जन्म का गांव) में सूचना दे दी गयी। भाई भी आये और तय हुआ कि गणोश यहीं रहेगा। गणोश की पढ़ाई इस प्रकार बाढ़ में ही हुई और उसकी शादी भी। जब शादी में घूंघट देने की रस्म पूरी करने की बात हुई तो गणोश के आग्रह पर इंद्रदेव ने ही नयी दुल्हन को घूंघट दिया। गणोश विद्युत बोर्ड में क्लर्क हुआ और हजारीबाग प्रमंडल में पोस्टिंग हुई। जैसा कि प्राय: ही होता है गांववाले तो आपस में फूट डालने में ही प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, सबों ने दोनों के कान भरे। इंद्रदेव से सब पूछते थे कि पैतृक धन के तो अब दो अधिकारी हो गये, आपके साथ गणोश भी? आखिर इंद्रदेव की बुद्धि में भी यह बात बैठ गयी और गणोश ने भी महसूस किया, वास्तव में बेघर होने का। धर्मशास्त्रों के अनुसार भी पूर्व जन्म का संबंध नहीं रहना चाहिए। इस जन्म में जो नया संबंध होता है, उसी को मान्यता दी गयी है। मैंने यह कहानी लिखी और एक दिन इंद्रदेव को दिखा दी। वह खूब हंसा और पूछा, ‘ई तो हम तोरा नै कहलियो हल, ई तू कैसे लिख देल्हू?’ ‘ले खनी’ जब चलती है तो वह सब के हृदय की बात पकड़ लेती है। सत्य भी यही था। गणोश फिर कभी-कभी ही, शायद ही आता। कई बार मैंने भी चिट्ठी लिखी पर, वह आया नहीं। आज मेरी सेवा से निवृत्त हुए 18 वर्ष हो गये हैं। पता नहीं, मित्र इंद्रदेव इस दुनिया में है भी या नहीं और उसके भाई गणोश भी, जो मृत्यु के छह वर्षो बाद सोलंकी राजपूत के घर मननपुर में प्राय: 30- 35 मील दूर जन्मा था, कहां है? मनुष्य के मन में स्मृतियां प्राय: ही आती रहती हैं। वहीं यह आज लिख दिया। बाढ़ स्टेशन के समीप का क्षेत्र अपने में कई पुरानी स्मृतियों को संजोये है। नालंदा विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर जब मुहम्मद-बिन-वे-इख्तियार खिलजी यहां आया था, तो गंगा की बाढ़ देखकर तेजी से जाकर मुकाम लिया था, जिस स्थान वह, वही आज का मोकामा है। आज से प्राय: 80 वर्ष पहले इसी बेढ़ना गांव की ब्राह्मणी ने पति की मृत्यु पर गंगा में जाकर चिता पर अपना शरीर जला दिया था। उस स्थान का नाम सतीघाट है। परमानंद सिंह, पूर्व सचिव, हाथीदह, पटना
Source : http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=20&eddate=4/24/2011
No comments:
Post a Comment