Sunday, September 18, 2011

Time Travelling Possible

समय में यात्रा संभव है -
हम कोई भी घटना / वस्तु  प्रकाश की गति से देखते हैं अर्थात जब वस्तु  पर प्रकाश पड़ता है और टकराकर हमारी आँखों तक पहुँचता है तब हमें वह घटना / वस्तु  दिखाई देती है |
हमारी अन्तरिक्ष दूरबीनें (हब्बल टेलेस्कोप )  जब कोई सुदूर प्रकाश वर्षीय घटना देखती हैं तब वह कई साल पहले वह घटना घटित हुई होती है |
अगर हम प्रकाश की गति से तेज यात्रा कर सकते हैं तब हम समय में यात्रा ( काल यात्री ) कर सकते हैं | 
उदाहरनार्थ  - मान लीजिये किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है और आप उसे देखते हैं,  लेकिन वह घटना १० प्रकाश वर्ष दूर स्थित किसी दूरस्थ तारे पर / किसी सूदूर ग्रह पर  पहुँचने मैं दस साल का समय लेगा |
लेकिन अगर आप अगर प्रकाश की दुगनी रफ़्तार से उस   दूरस्थ तारे पर /  सूदूर ग्रह    पर पहुंचते हैं तो आप वहां पर ५ वर्ष पूर्व की घटना देख रहे होंगे |
अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार प्रकाश ब्रह्मांड में भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न गति से यात्रा करता है | मतलब आप उस दूरस्थ तारे पर /  सूदूर ग्रह पर कुछ स्थानों के लिए पूर्वकाल देख रहे होंगे और कुछ के लिए भविष्य काल में |
ब्लैक होल अपने गुरुत्वाकर्षण से प्रकाश को भी खिंच लेता है और प्रकाश बहार नहीं निकल पाता, इस कारन से वह हमें काला (ब्लैक ) दिखाई देता है |
ब्लैक होल के केंद्र में (जिसे सिंगुलारिटी कहते हैं )   समय और स्थान भी ट्विस्ट हो जाता है | और सिंगुलरिटी का उपयोग हम प्रकाश की गति से तेज यात्रा करने में कर सकते है |
English version : Time Travelling is possible -
When we see object / happening, We see it with speed of light. Means light falls on object and reflected back and when it reach to our eyes, We see it.
Similarly space telescopes (Hubbal etc. ) see any object/happening with a distance of 10 light years, then such  happening occurs 10 years back and We see its past happened 10 years before.
But if something travel faster than light (say double speed) then We see  past of such happening 5 years before. Therefore relatively one is past and one is future.
According to Albert Einstein, time is travlling with different different speed in space.At a high gravity place time slows down due to law of nature OR say fine fabric of nature.
An experiment was conducted - In satellites atomic clock is runnning slow but on clock is running fast, And when scientists check they found it is due to earth's gravity.
Albert Einstein refers an experiment about pai meson particle, He found those particles which are travelling with high speeds are decayed in longer time than those who are with slow speed.
There are many other experiments also done in which it proves speed of light & time has a relation.
Blackhole is a thing where light itself can't go out due to its powerful gravity. And at the center of Blackhole  (Singularity) time and space itself twisted due to very very high gravity.And matter/light only came out in the form of quesar.
Einstein suggests . We can't cross the barrier of speed of light as mass becomes infinite.
m = m0/ under-root(1-v(square)/c(square)
Experiments are going on to find - Creation of Universe , Nano Blackholes, Higgs Boson (God Particle) etc.
in Switzerland(Geneva) in Large Hadron Collider (LHC) Project.
One another scientist - Ronald Mellat (Age - 66 years) is also trying to make a time travelling machine from last 56 years to get back his father after his death due to heart attack, when he was 10 years old.
And he created an interesting design for time machine. May be he make it OR not, but his efforts really helpful and will not go in vain.
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समय क्या हैं और कुछ लोग भारत में इसकी क्या व्याख्या करते हैं | यह जानकारी मेने इन्टरनेट पर लोगों के आपसी वार्तालाप से एकत्र की है , देखें -
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समय (time) एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है। सापेक्षवाद के अनुसार समय दिग्देश (स्पेस) के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा। समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
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समय मापन
अति प्राचीन काल में मनुष्य ने सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार प्रात:, दोपहर, संध्या एवं रात्रि की कल्पना की। ये समय स्थूल रूप से प्रत्यक्ष हैं। तत्पश्चात् घटी पल की कल्पना की होगी। इसी प्रकार उसने सूर्य की कक्षागतियों से पक्षों, महीनों, ऋतुओं तथा वर्षों की कल्पना की होगी। समय को सूक्ष्म रूप से नापने के लिए पहले शंकुयंत्र तथा धूपघड़ियों का प्रयोग हुआ। रात्रि के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था। तत्पश्चात् पानी तथा बालू के घटीयंत्र बनाए गए। ये भारत में अति प्राचीन काल से प्रचलित थे। इनका वर्णन ज्योतिष की अति प्राचीन पुस्तकों में जैसे पंचसिद्धांतिका तथा सूर्यसिद्धांत में मिलता है। पानी का घटीयंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था। उसके बाहरी भाग पर पल अंकित कर दिए जाते थे। इसलिए पलों को पानीय पल भी कहते हैं। बालू का घटीयंत्र भी पानी के घटीयंत्र सरीखा था, जिसमें छिद्र से बालू के गिरने से समय ज्ञात होता था
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Saturday, August 6, 2011

क्या मृत्यु के बाद जीवन संभव है (Is Life after Deaths is Possible)

क्या मृत्यु के बाद जीवन संभव है (Is Life after Deaths is Possible)

Dr. Kirti Swaroop Rawat is researching for reincarnation/rebirth from last 43 years.
A resident of Bhaskar Sector-1, Goyal Nagar , Indore and Director of International Center for Reincarnation Research, Dir. Kirti Swaroop Rawat says he compiled approximatly 500 cases of childrens and says he has sufficient evidence to prove reincarnation.
And he created documantries for two cases. One is created for a German team naming "Fifth Dimension" about the case of Shanti Devi.
Its documentary is dubbed in Hindi Language for a show of Discovery Channel in India.


इंदौर. क्या मृत्यु के बाद जीवन संभव है। मम विश्वास करना कहां तक उचित होगा। पुनर्जन्म को लेकर होने वाली आशंकाओं को लेकर भास्कर सेक्टर-1 स्थित गोयलनगर निवासी डॉ.कीर्तिस्वरूप रावत शोध कर रहे हैं। वे इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिइनकर्नेशन रिसर्च के डायरेक्टर हैं जो मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं विषय पर लगभग 43 साल से प्रयासरत है।


श्री रावत बताते हैं उनके पास लगभग 500 बच्चों के पुनर्जन्म की फाइलें हैं। इसमें उनके पुनर्जन्म की कहानियां है। इन 43 वर्षो में कई ऐसे साक्ष्य भी मिले जिसके कारण पुनर्जन्म पर विश्वास किया जा सकता है। अभी तक मेरे दो केस पर डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई है। इसमें जर्मन से आई टीम ने वर्ल्ड के लिए प्रमुख भाषाओं में लगभग 44 मिनट की ‘फिफ्थ डॉइमेंशन’ नामक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। इसमें मेरे दिल्ली वाले शांतिदेवी नामक महिला के केस पर लगभग 13 मिनट दिए थे। जो कहती थी वो पुनर्जन्म पर मथुरा में रहती थी।

इंडिया में दिखाने के लिए इस डॉयक्यूमेंट्री को हिंदी भाषा में डब किया गया था और उसका प्रसारण डिस्कवरी चेनल पर किया गया था। इसके अलावा कुछ समय पहले यूरोप के ऑस्ट्रिया से आई डॉयरेक्टर ईबा मारिया बर्गर ने अपनी टीम के साथ मेरे केस पर राजस्थान के दो गांवों में करीब 46 मिनट की ‘रीइंकर्नेशन’ नामक डॉयक्यूमेंट्री बनाई थी। इसकी एकरिंग जर्मनी भाषा में की गई थी और इसका प्रसारण वहीं के स्थानीय चैनल ओएफआर पर 30क् नवबंर २क्१क् को किया गया था।...
 
Source : Denik Bhaskar News Paper