Saturday, May 25, 2013

किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्‍माएं


किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्‍माएं






पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है।
दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्‍मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्‍वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्‍ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है।
कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो क‍ि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्‍जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्‍थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्‍यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं।
भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में 
भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्‍दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्‍या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्‍वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्‍पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्‍यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्‍य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप 
भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे।
उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था।
सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।
तस्‍वीरों में देखें: ऑटो शो में हॉट बेब्‍स के जलवे
राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी।
उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्‍लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं।

किलें में सूर्यास्‍त के बाद प्रवेश निषेध

फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्‍त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्‍त के बाद इस इलाके किसी भी व्‍यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्‍त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है।
किलें में रूहों का कब्‍जा 
इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्‍या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।
इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्‍सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्‍त बहुत ही सन्‍नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट बॉक्‍स में अपने विचार जरूर दें

Saturday, February 23, 2013

6th Sense Power in Animal - Birds



पशु-पक्षी देते हैं खतरे की सूचना  , जानवरों को होता है पूर्वाभास
(6th Sense Power in Animal - Birds )

It can be due to listening Ultrasonic , Hyper Sonic sound, can see Infra Red waves.


बात लगभग एक सदी पुरानी है। अमेरिका के पश्चिमी द्वीप समूह का लगभग 5000 फुट ऊँचा माउंट पीरो नामक पर्वत ज्वालामुखी बनकर धधकने लगा और फूट पड़ा। पर्वत के टुकड़े-टुकड़े हो गए। इस प्राकृतिक विपदा ने तीस हजार मनुष्यों को लील लिया। करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई।

जो लोग जीवित रह गए उन्होंने बताया कि यहाँ के पशु-पक्षी रात में रुदन-सा करते थे और ऐसा कई दिनों से हो रहा था। साथ ही पक्षियों ने अपने घर कहीं और बसा लिए थे। सर्पों, कुत्तों और सियारों ने तो मानो काफी दिनों पहले ही जगह को छोड़ दिया था।

सन्‌ 1904 में घटी इस घटना के अतिरिक्त भी अनेकानेक घटनाओं का जिक्र करते हुए जीवविज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. विलियम जे. लॉग ने पशुओं की इंद्रियातीत शक्ति को स्वीकारा है। उनके मुताबिक पशु-पक्षी भले ही बुद्धि-कौशल में मनुष्य की तुलना में कमतर हों परंतु उनकी इंद्रियातीत शक्ति काफी बढ़ी-चढ़ी होती है और वे उसके आधार पर अपनी जीवनचर्या का सुविधापूर्वक संचालन करते हैं। डॉ. विलियम ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यदि पशु-पक्षियों में वाक्‌ शक्ति होती तो वे बेहतरीन ज्योतिषी साबित होते।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रति तो हिरणों, मछलियों, भालुओं, चूहों, सर्पों आदि सभी पशु-पक्षियों में संवेदनशीलता देखी गई है और इनका जिक्र चीन, जर्मनी, जापान, रूस और अमेरिका सहित अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने समय-समय पर किया है। इस संदर्भ में अनेक सार्थक अनुसंधान भी हुए हैं।

मसलन बर्फ गिरने से पहले ध्रुवीय भालुओं का भोजन एकत्रीकरण, बर्फ जमने वाली झीलों से मछलियों का पलायन, बर्फ गिरने के पहले हिरणों का सुरक्षित स्थानों पर पहुँचना, भूकम्प के पहले पालतू कुत्तों का मालिक के आदेशों का पालन न करना, एक-दूसरे को काटना, चूहों-सर्पों का बिलों से निकलकर बेतहाशा भागना, मछलियों का तल में चले जाना, गाय आदि मवेशियों का रस्सी छुड़ाने का प्रयास करना आदि-आदि।



परंतु ऐसी घटनाएँ भी वैज्ञानिकों ने दर्ज की हैं, जिनसे पता चलता है कि पशु-पक्षियों में बाकायदा छठी इंद्रिय होती है। एक घटना का उल्लेख प्रासंगिक होगा। घटना वियना की है। एक कुत्ता माल उठाने-उतारने की क्रेन के पास पड़ा सुस्ता रहा था। अचानक वह चौंककर उठा और उछलकर दूर जाकर बैठ गया। कुछ मिनटों के बाद अचानक क्रेन का रस्सा टूट गया और भारी लौहखंड वहीं गिरा जहाँ कुत्ता पहले लेटा हुआ था।


एक अन्य रोचक घटना से हमें पशुओं की सुविकसित अतीन्द्रिय शक्ति का पता चलता है। बर्मा में अँगरेजों और जापानियों के बीच युद्ध चल रहा था। एक दिन अँगरेजों की एक टुकड़ी पर चंद जापानियों ने हमला कर दिया। जापानियों ने सोची-समझी रणनीति के तहत पीछे हटने का नाटक खेला। वे इस तरह दूर खंदकों में जा छुपे। अँगरेजों ने उन्हें भागा हुआ समझा और देखा कि उनके ठिकाने पर एक मेज पर ताजा पकाया हुआ खाना रखा है।

वे खाना खाने को तत्पर हुए कि सार्जेंट रैडी की काली बिल्ली ने खाने को तहस-नहस कर दिया और अँगरेज सैनिकों पर गुर्राने लगी। सैनिकों ने उसे धमकाने के काफी प्रयास किए परंतु उसने उन्हें मेज के पास नहीं फटकने दिया। कुछ ही मिनटों में बारूदी सुरंग फट पड़ी और खाने की मेज और बिल्ली के टुकड़े-टुकड़े हो गए। बर्मा की कलादान घाटी में उस बिल्ली की समाधि आज भी मौजूद है और समाधि पर घटना का भी संक्षिप्त विवरण अंकित है