Friday, June 13, 2014

NASA scientist designs faster-than-light spacecraft

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NASA scientist designs faster-than-light spacecraft


A NASA scientist and a renowned graphic artist have teamed up to produce designs for a vessel that may someday allow human beings to travel the universe and beyond in a first-of-its-kind warp drive spacecraft faster than light.

Impressive illustrations of the work-in-progress — NASA’s New Design for a Warp Drive Ship” — made their way to the web this week while NASA researcher Harold White and Dutch artist 


Mark Rademaker continue to fine-tune the concept behind a type of craft that may actually be able to travel faster than the speed of light.


Image by Mark Rademaker / flickr.com

White, a physicist for the aeronautics administration that has been studying a faster-than-light propulsion concept for years, has previously gone public with his research concerning a craft capable of that sort of travel. As far back as 2011, in fact, he attracted the attention of other scientists by publishing a report that set out to prove the feasibility of the F-T-L propulsion concept. Now for the first time, his cohort has come up with designs that begin to show the sort of spacecraft they’re striving to create.



"My own designs for the most part followed these guidelines. I do put research in things like era, events in the Trek timeline, plausible registry numbers and specifications of a ship. I put about three months of research in theXCV-330Ringship that Matt Jefferies sketched in the 1960s. I was asked to convert that sketch/blueprint as a 3D CGI model, I wanted it to look spot on,” the artist told CNET.

Speaking to io9, Rademaker said his latest design “includes a sleek ship nestled at the center of two enormous rings, which create the warp bubble” that would, in theory, make White’s F-T-L propulsion plan possible.

“Essentially, the empty space behind a starship would be made to expand rapidly, pushing the craft in a forward direction — passengers would perceive it as movement despite the complete lack of acceleration,” io9’s George Dvorsky added in his report.

“White speculates that such a drive could result in ‘speeds’ that could take a spacecraft to Alpha Centauri in a mere two weeks — even though the system is 4.3 light-years away.”

“Perhaps a Star Trek experience within our lifetime is not such a remote possibility,” White said previously of his plans.

News Source (And see Video on link, how it is possible) : http://rt.com/usa/165564-nasa-ixs-enterprise-white/

See also : http://origin-of-universe-god.blogspot.com

Saturday, May 25, 2013

किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्‍माएं


किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्‍माएं






पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है।
दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्‍मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्‍वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्‍ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है।
कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो क‍ि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्‍जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्‍थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्‍यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं।
भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में 
भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्‍दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्‍या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्‍वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्‍पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्‍यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्‍य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।
भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप 
भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे।
उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था।
सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।
तस्‍वीरों में देखें: ऑटो शो में हॉट बेब्‍स के जलवे
राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी।
उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्‍लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं।

किलें में सूर्यास्‍त के बाद प्रवेश निषेध

फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्‍त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्‍त के बाद इस इलाके किसी भी व्‍यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्‍त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है।
किलें में रूहों का कब्‍जा 
इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्‍या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।
इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्‍सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्‍त बहुत ही सन्‍नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट बॉक्‍स में अपने विचार जरूर दें

Saturday, February 23, 2013

6th Sense Power in Animal - Birds



पशु-पक्षी देते हैं खतरे की सूचना  , जानवरों को होता है पूर्वाभास
(6th Sense Power in Animal - Birds )

It can be due to listening Ultrasonic , Hyper Sonic sound, can see Infra Red waves.


बात लगभग एक सदी पुरानी है। अमेरिका के पश्चिमी द्वीप समूह का लगभग 5000 फुट ऊँचा माउंट पीरो नामक पर्वत ज्वालामुखी बनकर धधकने लगा और फूट पड़ा। पर्वत के टुकड़े-टुकड़े हो गए। इस प्राकृतिक विपदा ने तीस हजार मनुष्यों को लील लिया। करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई।

जो लोग जीवित रह गए उन्होंने बताया कि यहाँ के पशु-पक्षी रात में रुदन-सा करते थे और ऐसा कई दिनों से हो रहा था। साथ ही पक्षियों ने अपने घर कहीं और बसा लिए थे। सर्पों, कुत्तों और सियारों ने तो मानो काफी दिनों पहले ही जगह को छोड़ दिया था।

सन्‌ 1904 में घटी इस घटना के अतिरिक्त भी अनेकानेक घटनाओं का जिक्र करते हुए जीवविज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. विलियम जे. लॉग ने पशुओं की इंद्रियातीत शक्ति को स्वीकारा है। उनके मुताबिक पशु-पक्षी भले ही बुद्धि-कौशल में मनुष्य की तुलना में कमतर हों परंतु उनकी इंद्रियातीत शक्ति काफी बढ़ी-चढ़ी होती है और वे उसके आधार पर अपनी जीवनचर्या का सुविधापूर्वक संचालन करते हैं। डॉ. विलियम ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यदि पशु-पक्षियों में वाक्‌ शक्ति होती तो वे बेहतरीन ज्योतिषी साबित होते।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रति तो हिरणों, मछलियों, भालुओं, चूहों, सर्पों आदि सभी पशु-पक्षियों में संवेदनशीलता देखी गई है और इनका जिक्र चीन, जर्मनी, जापान, रूस और अमेरिका सहित अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने समय-समय पर किया है। इस संदर्भ में अनेक सार्थक अनुसंधान भी हुए हैं।

मसलन बर्फ गिरने से पहले ध्रुवीय भालुओं का भोजन एकत्रीकरण, बर्फ जमने वाली झीलों से मछलियों का पलायन, बर्फ गिरने के पहले हिरणों का सुरक्षित स्थानों पर पहुँचना, भूकम्प के पहले पालतू कुत्तों का मालिक के आदेशों का पालन न करना, एक-दूसरे को काटना, चूहों-सर्पों का बिलों से निकलकर बेतहाशा भागना, मछलियों का तल में चले जाना, गाय आदि मवेशियों का रस्सी छुड़ाने का प्रयास करना आदि-आदि।



परंतु ऐसी घटनाएँ भी वैज्ञानिकों ने दर्ज की हैं, जिनसे पता चलता है कि पशु-पक्षियों में बाकायदा छठी इंद्रिय होती है। एक घटना का उल्लेख प्रासंगिक होगा। घटना वियना की है। एक कुत्ता माल उठाने-उतारने की क्रेन के पास पड़ा सुस्ता रहा था। अचानक वह चौंककर उठा और उछलकर दूर जाकर बैठ गया। कुछ मिनटों के बाद अचानक क्रेन का रस्सा टूट गया और भारी लौहखंड वहीं गिरा जहाँ कुत्ता पहले लेटा हुआ था।


एक अन्य रोचक घटना से हमें पशुओं की सुविकसित अतीन्द्रिय शक्ति का पता चलता है। बर्मा में अँगरेजों और जापानियों के बीच युद्ध चल रहा था। एक दिन अँगरेजों की एक टुकड़ी पर चंद जापानियों ने हमला कर दिया। जापानियों ने सोची-समझी रणनीति के तहत पीछे हटने का नाटक खेला। वे इस तरह दूर खंदकों में जा छुपे। अँगरेजों ने उन्हें भागा हुआ समझा और देखा कि उनके ठिकाने पर एक मेज पर ताजा पकाया हुआ खाना रखा है।

वे खाना खाने को तत्पर हुए कि सार्जेंट रैडी की काली बिल्ली ने खाने को तहस-नहस कर दिया और अँगरेज सैनिकों पर गुर्राने लगी। सैनिकों ने उसे धमकाने के काफी प्रयास किए परंतु उसने उन्हें मेज के पास नहीं फटकने दिया। कुछ ही मिनटों में बारूदी सुरंग फट पड़ी और खाने की मेज और बिल्ली के टुकड़े-टुकड़े हो गए। बर्मा की कलादान घाटी में उस बिल्ली की समाधि आज भी मौजूद है और समाधि पर घटना का भी संक्षिप्त विवरण अंकित है



Sunday, November 13, 2011

Reincarnation Story of 2.5 year child Jaybeer, Thari Village, Karnal

ढाई साल का जयबीर यहां के लोगों के लिए बना 'चमत्कार'!

(Reincarnation Story of 2.5 year child Jaybeer, Thari Village, Karnal)

निसिंग (करनाल). ठरी गांव में पैदा हुआ ढाई वर्षीय जयबीर सिंह अपने पूर्व जन्म की कहानी अपने परिजनों को बताता है। वह स्वयं को जयमल बताता है, जिसकी 1999 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। दोनों ही परिवार व अन्य लोग इसे भगवान का करिश्मा मान रहे हैं। नन्हा सा यह बालक अपने पूर्व जन्म के पुत्रों की पहचान करता है।

परिजनों के अनुसार वह बार-बार अपने पूर्व गांव डाचर में जाने की बात करता है। जानकारी मिलने के बाद पिछले सभी रिश्तेदार ठरी जाकर उससे मिलने जा रहे हैं। अन्य गांवों के लोग भी उसके पूर्व जन्म की बातों को सुनने के लिए आ रहे हैं। पूछे जाने पर जयबीर कहता है कि मंजूरा गांव के पास बाइक पर उसे व उसके लड़के देव को चोट लगी थी।

कुछ हद उसकी कही बातें पिछले परिजनों को रास आ रही हैं। जयबीर के पिता रणबीर सिंह व उनकी दादी जोगिंद्र कौर का कहना है कि वह पिछले करीब दो माह से अजीब सी बातें कर रहा था। जब उन्होंने इन बातों को गहराई से लिया तो उन्हें पूर्व जन्म के आभास का पता चला। जो बातें वह कर रहा था अधिकतर सही मिल रही हैं। डाचर की वृद्धा सिंद्र कौर जो ठरी में विवाहित है उसे वह अपनी चचेरी बहन कह अपने घर पर खाना भी खिलाता है।

खाना न खाने से वह अपने परिजनों से खफा भी होता है। वह अपने परिजनों से अपने गांव डाचर जाकर रहने की बात भी करता है। जयबीर सिंह की यह कहानी क्षेत्र में चर्चा बनी हुई है। शनिवार को जयमल का बेटा सिंदर व बालू में विवाहित उसकी बेटी का परिवार भी ठरी उससे मिलने गए। जयबीर सिंह ने कुछ बातें ऐसी बताई जिससे दोनों को आभास हुआ कि यह जयमल का दूसरा जन्म हो सकता है।

अब जयबीर जाएगा डाचर

अगले रविवार को रणबीर सिंह अपने बेटे जयबीर सिंह को साथ लेकर डाचर गांव में जाएगा। जहां असलियत का पता लगाया जाएगा। हालांकि जयबीर सिंह बोलते वक्त तुतलाता है, लेकिन परिजन कह रहे हैं वे उसे लेकर डाचर जाएंगे, जहां वह अपने पूर्व जन्म के परिजनों से मिलेगा।

News : http://www7.bhaskar.com/article/HAR-HAR-HIS-pre-birth-story-2459157.html
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Reincarnation story of Sachin, A 2.5 year child in Hindoncity

ढाई साल के बच्चे को याद हैं पिछले जन्म की बातें!

(Reincarnation story of Sachin, A 2.5 year child in Hindoncity)

हिण्डौनसिटी। ढाई साल के एक बच्चे ने पूर्व जन्म की बातें याद होने का दावा करते कहा है कि वह इससे पहले उसी गांव में जन्म ले चुका है। उसकी मृत्यु के बाद उसने अपने मित्र के घर पुन: जन्म लिया। जाटव बस्ती के खारा कुआं कॉलोनी के सियाराम जाटव की मानें तो सात दिन पूर्व उसके ढाई वर्षीय बालक सचिन ने पूर्व जन्म में भी खुद के उसी गांव में पैदा होने की बात बताई। उसने कहा कि पूर्व जन्म में वह चौबे पाडा निवासी बृजेश पाठक पान वाला था।
उसकी ढाई वर्ष पूर्व किडनी की बीमारी से मौत हो गई थी। बालक की जिद पर परिजन उसे बृजेश के पिता छोटेलाल के घर ले गए। इस दौरान बालक ने अपने कथित पूर्व जन्म के परिजनों को पहचान लिया।
छोटे लाल के अनुसार, उसके घर की एलबम में सचिन ने उसकी पुत्रवधू कुसुमलता (बृजेश की पत्नी) को स्वयं की पत्नी व पोते भविष्य (6) व गगन (4) को अपना पुत्र बताया। इधर सियाराम का कहना है कि मृतक बृजेश पाठक (32) उसका मित्र था। अग्रसेन महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य व मनोविज्ञान के प्रवक्ता डॉ. सुनील अग्रवाल का कहना है कि व्यवहार में पूर्वजन्म की याद्दाश्त को पुनर्जन्म के रूप में देखा जाता है।

Reincarnation : 3 years child told story of his previous life

पूर्वजन्मः तीन साल के बालक की तीस वर्ष की पत्नी

( Reincarnation : 3 years child told story of his previous life)
His wife of previous life founds it true and accpts 3 year husband)

पीलीभीत: तीन साल का अर्पन और तीस साल की चंदना के बीच रिश्ता पति-पत्नी का है। हैरान मत हों, ऐसा दावा करने वाला है, अर्पण जिसकी 27 साल पहले पैसे को लेकर दोस्तों ने हत्या कर दी थी। पूर्वजन्म का यह दावा बंगाली समुदाय के लोगों में ही क्षेत्र में चर्चा का मौजू बना हुआ है।पूरनपुर तहसील के ग्राम फूल चन्दुइया निवासी डा0 सुभाश मंडल के रिष्तेदार बंगाल से आये इन में तीन साल का अर्पन मंडल अपने पूर्वजन्म का दावा कर रहा है। इसके दावे को सभी मान रहे हैं क्योंकि वह जो बता रहा है वह उसके परिवारजनों द्वारा पुश्टि करने पर सही पाया गया है।उसके साथ उसके पिछले जन्म की पत्नी चंदना भी उसके साथ है। जो तीस साल की हो चुकी है। चंदना अपने पुराने जीवनसाथी को उसके नये जीवन में भी पूरा ख्याल रख रही है। कहा जाता है कि यदि चंदना किसी से हंसकर बोल दे तो अर्पन का पारा हाई हो जाता है। बंगाल प्रदेष के गांव बजुआ निवासी सुषान्त मंडल और उसकी पत्नी रूहीना का कहना है कि पिछले जन्म में अर्पन बंगाल के जिला नोडेराबाद का रणजीत मण्डल था। उसके दोस्तों ने पैसों के लेन-देन में उसके हाथ-पैर बांधकर गला काटकर हत्या कर दी थी। अर्पन ने उसके घर जन्म लेने के बाद पिछली बातें बताना शुरू कर दीं। पूर्व जन्म की कहानी को अर्पना अपनी जुबानी में बता रही है। साथ ही वह निषान भी दिखाता है जो पूर्व जन्म में उसके दोस्तों ने दिये हैं। इस पूर्व जन्म की कहानी को बंगाल के सभी अखबारों ने प्रकाषित किया है। इस कहानी को जहां एक ओर उसके परिवारजन सही मान रहे हैं वहीं क्षेत्र के लोग अपनी-अपनी राय पेष करके इसको चर्चा का मौजू बनाये हुये हैं।—

One more Story of Reincarnation in India

पूर्व जन्म की कहानी ( One more Story of Reincarnation in India)

मेरा नाम भीम नहीं है जय निरंजन पुनर्जन्म की पहली घटना सबसे पहले मैने अपने ही गांव महरहा, तहसील- बिन्दकी, जिला-फतेहपुर (उ. प्र.) में सुनी थी।
यद्यपि इस घटना का तथ्यपरक वैज्ञानिक अध्ययन अभी तक किसी परामनोविज्ञानी द्वारा नहीं हो सका है क्योंकि इस घटना की जानकारी उस समय किसी समाचार पत्र में भी नहीं दी गयी थी।

मैने इस घटना के बारे में जैसा सुना है उसका विवरण इस प्रकार है।

करीब 1990 के आस-पास की बात है। मैं कक्षा सात में पढ़ता था। मेरे गांव महरहा में डॉ. राकेश शुक्ला के चार वर्षीय बेटे भीम ने अपने माता-पिता से यह कहना शुरू कर दिया कि उसका नाम भीम नहीं है और न ही यह उसका घर है। उसके द्वारा रोज-रोज ऐसा कहने पर एक दिन उन्होंने पूछा कि, बेटा, तुम्हारा नाम भीम नहीं है तो क्या है और तुम्हारा घर यहां नहीं है तो कहां है?

 इस पर भीम ने जो उत्तर दिया उससे डॉ. शुक्ला आश्चर्य चकित रह गए। उसने जबाब दिया कि उसका असली नाम- 'सुक्खू' है। वह जाति का चमार है एवं उसका घर बिन्दकी के पास मुरादपुर गांव में है। उसके परिवार में पत्नी एवं दो बच्चे हैं। बड़े बेटे का नाम उसने मानचंद भी बताया। आगे उसने यह भी बताया कि वह खेती-किसानी करता था।

एक बार खेतों पर सिंचाई करते समय उसके चचेरे भाइयों से विवाद हो गया, जिस पर उसके चचेरे भाइयों ने उसे फावड़े से काटकर मार डाला था।

भीम ने अपने पिता डॉ. राकेश शुक्ला से अपनी पूर्वजन्म की पत्नी और बच्चों से मिलने की इच्छा भी जतायी। मुरादपुर, महरहा से तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर ही है।

इसलिए डॉ. शुक्ला ने एक दिन उस गांव में जाकर लोगों से सुक्खू चमार और उसके परिजनों के बारे में पूछ-ताछ की तो उन्हें भीम द्वारा बतायी गयी सारी जानकारी सही मिली।

 डॉ. शुक्ला के मुरादपुर से लौटने के बाद एक दिन सुक्खू चमार की पत्नी अपने दोनों बच्चों तथा कुछ अन्य परिजनों के साथ डॉ. शुक्ला के घर भीम को देखने आयी।

यहां पर भीम ने अपने पूर्व जन्म के सभी परिजनों को पहचाना एवं उन्हें उनके नाम से संबोधित भी किया। पत्नी के द्वारा पैर छूने एवं रोने पर उसने उसे ढाढस भी बंधाया और उसके सिर पर हाथ फेरा। जब वे लोग भीम से घर चलने के लिए बोले तो वह सहर्ष तैयार हो गया लेकिन डॉ. शुक्ला एवं उनकी पत्नी ने उसे नहीं जाने दिया।

इस घटना के बाद भीम अक्सर अपनी पूर्व पत्नी एवं बच्चों से मिलने की बात करता रहता था। इससे डॉ. शुक्ला काफी परेशान भी हुए। बाद में उन्होंने भीम की पूर्वजन्म की स्मृति को समाप्त करने के लिए किसी तांत्रिक की सहायता ली। जिससे बाद में भीम की पूर्वजन्म की स्मृति समाप्त हो गयी। वर्तमान में भीम शुक्ला बी. टेक कर रहा है।

इस घटना के सभी व्यक्ति एवं स्थान वास्तविक हैं। उ. प्र. के फतेहपुर जिले में बिंदकी तहसील मुखयालय से 4 किमी. दूर भीम शुक्ला पुत्र राकेश शुक्ला का गांव महरहा है। एवं बिंदकी तहसील मुखयालय से 1 किमी दूर मुरादपुर में स्व. सुक्खू हरिजन का घर एवं परिजन हैं। डॉराकेश शुक्ला का क्लीनिक एवं सीमेंट की दुकान बिन्दकी में महरहा रोड पर स्थित है।
News source : Future Samachar

Reincarnation Story by 4 year child Ayush India

पूर्व जन्म की कहानी बता रहा मासूम, हैरत में पड़ा पूरा गांव

सीतामढी. बिहार के शिवहर जिले के महुअरिया गांव के चार वर्षीय आयुष को अपनी पूर्व जन्म की सभी बातें बखूबी याद हैं। उसकी बातों को सुनकर परिजन ही नहीं बल्कि पूरा इलाका हैरत में है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग उसकी बातों को सुनने के लिए गांव पहुंच रहे हैं। उदय चन्द द्विवेदी के द्वितीय पुत्र आयुष बीते एक सप्ताह से पूर्व जन्म की बातें याद होने का दावा कर रहा है और उसके घर पहुंच रही भीड़ से पूर्व जन्म की बातों को धड़ल्ले से बखान कर रहा है।

मां जता रही अनहोनी की आशंका

उसकी मां सुमन देवी बताती है कि पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था कि कुछ लोगों को पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं। परन्तु अब उनके माथे पर ही यह पड़ गया। वे किसी अनहोनी की आशंका व्यक्त करते हुए कहती हैं कि जो भी हो रहा है वह उनके परिवार के लिए अच्छा नहीं है। इधर, चार वर्षीय आयुष ने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम उज्जैन सिंह था तथा उसकी पत्नी का नाम बेबी सिंह था। उसके पिता धीरेन्द्र सिंह और माता वीणा देवी थीं। वे तीन भाई थे। जिनका नाम धीरज, नीरज व धर्मेन्द्र था

पिछले जन्म में दिल्ली में था भव्य आवास

उसका दिल्ली के एलमाल चौक के रोड न. 4 में भव्य आवास है तथा चांदनी चौक की गली न. 5 में भी एक मकान है, जहां उसके बड़े भाई नीरज सिंह रहते हैं। उसके पास दो मारूती कार, एक लाइसेंसी बन्दूक तथा एक पिस्टल एवं कई मोबाईल फोन थे। उसकी तीन बहनें थीं और ससुराल बिहार के औरगांबाद जिले में था। आयुष का दावा है कि उसकी शादी का जोड़ा आज भी उसके अलमीरा में सजाकर रखा हुआ है। सोने वाले कमरे में उसका और उसकी पत्नी बेबी सिंह का संयुक्त फोटो टंगा हुआ है

पिछले जन्म में सरकारी भवनों को बनवाता था

आयुष का कहना है कि वह पूर्व जन्म में भवन निर्माण विभाग में ठेकेदारी का कार्य करता था और सरकारी भवने बनवाता था। उसका कहना है कि उसने बाबा रामदेव का योग भी त्रिकुट गांव में सीखा था जो आज भी याद है। चार वर्ष की उम्र में ही आयुष अच्छी तरह से योग भी कर लेता है। वह कहता है कि एक बार उसका एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गया था। 21 सितम्बर 2006 की सुबह उसे सांप ने कांट लिया जिसके बाद परिजनों ने इलाज कराया और वह बेहोश हो गया, जिसके बाद उसे कुछ भी याद नही हैं। आयुष की मां सुमन देवी का कहना है कि यदि आयुष का कहना सत्य है तो इसकी मौत सांप के काटने से हुई है और 21 सितम्बर 2006 के दोपहर में ही आयुष का जन्म हुआ था। हालाँकि, उसके बताये गये जगह का सत्यापन कराया जा रहा है।

News Source : http://bollywood2.bhaskar.com/article/BIH-child-telling-story-of-re-birth-in-bihar-2298022.html
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Sunday, October 9, 2011

पुनर्जन्म मेरा निजी अधिकार : दलाई लामा

Reincarnation is my personal right - Dalai Lama
पुनर्जन्म मेरा निजी अधिकार : दलाई लामा

76 वर्षीय दलाई लामा ने शनिवार को कहा कि जब वह '90 के आसपास' हो जाएंगे तो फैसला करेंगे कि क्या उनका पुनर्जन्म होना चाहिए


तिब्बती परंपरा के अंतर्गत बौद्ध भिक्षु किसी ऐसे लड़के को चुनते हैं जिसमें दिवंगत नेता के पुनर्जन्म के संकेत दिखते हैं. लेकिन बहुत से लोगों का अनुमान है कि चीन सरकार साधारण तरीके से खुद दलाई लामा का उत्तराधिकारी नियुक्त कर देगी.


चीन का कड़ा रुख
चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि पुनर्जन्म की कोई भी प्रक्रिया देश के कानूनों और नियमों के मुताबिक होनी चाहिए. मंत्रालय के प्रवक्ता होन्ग लाई ने पत्रकारों से कहा, "दलाई लामा का पद केंद्रीय सरकार द्वारा तय किया जाता है और ऐसा न करना गैर कानूनी है. दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया से जुड़े अनुष्ठानों का एक पूरा समूह है. कभी ऐसा नहीं हुआ जब दलाई लामा ने खुद अपना उत्तराधिकारी चुना हो. दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया में धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं और कानून व नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए."


पुनर्जन्म मेरा निजी अधिकार : दलाई लामा

आईएएनएस ॥ धर्मशाला : तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने शुक्रवार को कहा कि पुनर्जन्म का मुद्दा उनका निजी अधिकार है। दलाई लामा ने कहा कि अपना पुनर्जन्म मैं खुद तय करूंगा। इस बारे में फैसले का अधिकार और किसी को नहीं है। 14वें दलाई लामा ने कहा कि दलाई लामा संस्था का अनुसरण सदियों से किया जा रहा है। यह मेरा निजी अधिकार है कि मैं इसका पालन करूं या न करूं।

धर्मशाला.तिब्बतियों के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा है कि वे अपने पुनर्जन्म को खुद तय करेंगे। किसी अन्य को इसके निर्धारण का कोई अधिकार नहीं है। मैक्लोडगंज में आयोजित 11वीं तिब्बती धर्म संसद के दूसरे दिन शुक्रवार को उन्होंने ये विचार व्यक्त किए।

दलाई लामा ने कहा कि वे अभी पूर्णत: स्वस्थ हैं। ऐसे में उन्हें पुनर्जन्म को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं है। इसका निर्धारण वे करेंगे न कि चीन। निर्वासित तिब्बतियों का विश्वास है कि चीन की साम्यवादी सरकार तिब्बती बौद्ध धर्म के दो प्रमुख संस्थाओं दलाई लामा और पंचेन लामा को समाप्त करने पर तुली हुई है। अत: यह अधिक चिंता का विषय है।

बिगेस्ट / सबसे बड़ी खोज (Biggest Discovery of Mankind)

क्या अब समय यात्रा संभव हो जाएगी ?
(Is Time Travel Possible Now )

स्विट्जरलैंड में यूरोपीय परमाणु अनुसंधान केंद्र (सर्न) और इटली के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि उन्हें ऐसे पार्टिकल मिले हैं जो प्रकाश की गति से तेज चलते हैं. वैज्ञानिक  समुदाय अचम्भे में

अगर यह   साबित हो जाता है तो आइंस्टाइन का सापेक्षता का सिंद्धात गलत साबित हो जाएगा.स्विट्जरलैंड की सर्न प्रयोगशाला और इटली की प्रयोगशाला में हुए प्रयोग के दौरान यह सामने आया है. उन्होंने पाया कि ये छोटे सब एटॉमिक पार्टिकल 3,00,00,06 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से जा रहे हैं जो प्रकाश की गति से करीब छह किलोमीटर प्रति सेकंड ज्यादा


इस प्रयोग के प्रवक्ता भौतिकविद एंटोनियो एरेडिटाटो ने कहा, "यह नतीजा हमारे लिए भी आश्चर्यजनक है. हम न्यूट्रिनो की गति नापना चाहते थे लेकिन हमें ऐसा अद्भुत नतीजा मिलने की उम्मीद नहीं थी. हमने करीब छह महीने जांच, परीक्षण, नियंत्रण और फिर से जांच करने के बाद यह घोषणा की है. न्यूट्रीनो प्रकाश की तुलना में 60 नैनो सेंकड जल्दी पहुंचे."

Neutrino particle contains mass also, And according to Albert Einstein - Mass becomes infinite at the speed of light.
And nothing can be faster than light.
However, if something moves faster than light then it can travel in past or future.
We can send information in the past or future.

इस प्रयोग में शामिल वैज्ञानिकों ने इसके नतीजों के बारे में नपे तुले शब्दों में बात की. सर्न के निदेशक सर्गियो बेर्टोलुची ने कहा, "अगर इस नतीजे की पुष्टि हो जाती है तो हमारा भौतिकी को देखने का नजरिया बदल जाएगा

न्यूट्रीनो पर कोई आवेश नहीं होता और ये इतने छोटे होते हैं कि उनका द्रव्यमान भी अभी अभी ही पता चल सका है. इनकी संख्या तो बहुत होती है लेकिन इनका पता लगाना मुश्किल है. इन्हें भुतहा कण भी कहा जाता  है और ये सूरज जैसे तारों में न्यूक्लियर फ्यूजन के कारण पैदा होते हैं


सर्न से 732 किलोमीटर दूर स्थित ग्रैन सासो प्रयोगशाला को भेजे गए न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से एक सेकेंड के बहुत ही छोटे हिस्से से तेज़ पाए गए। शोधकर्ता स्वीकार कर रहे हैं कि वे इस नतीजे से काफी आश्चर्यचकित हैं


पार्टिकल फिजिक्स की दुनिया में इस घोषणा से सनसनी फैल गई है. फ्रांस में भौतिकी संस्थान के पिएरे बिनेट्यूरी ने कहा, "सामान्य सापेक्षता और विशेष सापेक्षता दोनों ही सिद्धांतों पर इससे सवाल खड़ा हुआ है." बोलोन्या इटली में भौतिकविद एंटोनियो जिचिषी कहते हैं, "अगर आप प्रकाश की गति को छोड़ दें तो विशेष सापेक्षता का सिद्धांत तो नाकाम हो जाएगा."


कई प्रकार के होते हैं न्यूट्रिनो
न्यूट्रीनो कई प्रकार के होते हैं और हाल में दिखा कि वे जल्दी ही एक से दूसरे प्रकार में बदल जाते हैं। टीम ने सिर्फ एक तरह के न्यूट्रीनो- म्युऑन न्यूट्रिनोज सर्न से इटली में ग्रैन सासो की भूमिगत प्रयोगशाला में भेजा जिससे पता चले कि उनमें से कितने रूप बदलकर टउ न्यूट्रीनो के रूप में वहाँ पहुंचे।
इस प्रयोग के दौरान शोधकर्ताओं ने देखा कि उतनी ही दूरी इन कणों ने सेकंड के कुछ अरब हिस्से से प्रकाश से तेजी से तय कर ली।
सर्न टीम ने इस टीम ने न्यूट्रीनो की ये दूरी तय करने का प्रयोग लगभग 15 हजार बार किया और उसके बाद इतनी बार इस अहम जानकारी को पाया जिसे एक औपचारिक खोज कहा जा सके।

यदि वैज्ञानिकों की यह खोज सही साबित होती है तो महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (सापेक्षता का सिद्धांत) खारिज हो जाएगी।

वहीं दूसरी ओर प्रयोग में शामिल रहे अलफॉन्स वेबर ने कहा कि इसमें किसी चूक की भी गुजांइश हो सकती है, इसलिए वह थोड़ा सतर्क हैं।


जानकारों का मानना है कि ताजा परिणामों से भौतिकी की अवधारणा में थोड़ा बदलाव जरूर आएगा। न्यूट्रिनो इतने सूक्ष्म कण हैं कि कुछ समय पहले ही यह पता लगा कि इनमें भार भी होता है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक पियरी बिनेट्रॉय ने इन परिणामों को क्रांतिकारी बताते हुए कहा कि यदि लोग इसे स्वीकार करते हैं तो भौतिकी विशेष्ाज्ञों को वापस अपने सिद्घांत दुरूस्त करने होंगे।

न्यूट्रिनो स्रोत -
न्यूट्रिनो प्राकृतिक रूप में तो मिलता ही है, इसका निर्माण कृत्रिम तरीके से भी किया जा सकता है। कृत्रिम न्यूट्रिनो के महत्वपूर्ण स्रोत परमाणु रिएक्टर हैं, जहां नाभिकीय विखंडन इसके निर्माण में सहायक होता है। परमाणु बम भी काफी मात्रा में न्यूट्रिनो बनने के कारक होते हैं। इसके अतिरिक्त यह घरती के अंदर प्राकृतिक रूप से होने वाले रेडिएशन, वातावरण में कॉस्मिक किरण और आणविक कणों में होने वाले संयोग, नाभिकीय संलयन आदि से भी बनता है। सुपरनोवा और बिग बैंग सिद्धांत भी इसके निर्माण में सहायक होते हैं।

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वैसे यह नहीं मान लेना चाहिए कि अगर न्यूट्रिनो के प्रकाश की गति से तेज चलने की बात अंतिम रूप से सिद्ध हो गई, तो इससे आइंस्टीन गलत सिद्ध हो जाएंगे, या क्वांटम सिद्धांत बीते जमाने की बात हो जाएगा। होगा यह कि आधुनिक विज्ञान की पेचीदा पहेलियां और ज्यादा पेचीदा हो जाएंगी। सापेक्षता सिद्धांत और क्वांटम सिद्धांत कई प्रयोगों की कसौटियों पर खरे उतरे हैं और इनका सबसे बड़ा प्रमाण हमारे आधुनिकतम इलेक्टॉनिक उपकरण हैं। अगर हम कंप्यूटर इस्तेमाल कर पाते हैं या उपग्रह के जरिये टेलीविजन पर बेहद साफ तस्वीर देख पाते हैं, तो यही भौतिकी के इन सिद्धांतों के सच होने का प्रमाण है। समस्या यह है कि कई सैद्धांतिक कसौटियों पर खरे उतरने के बाद और व्यावहारिक उपयोगों के बावजूद आधुनिक भौतिक विज्ञान की कई ऐसा गुत्थियां हैं, जिनका कोई समाधान विज्ञान में नहीं मिल पाया है, खासकर क्वांटम तो विरोधाभासों का पिटारा है, जिसके आधार पर बट्रेंड रसेल जैसे चिंतक इस भौतिक जगत की वास्तविकता को ही चुनौती दे चुके हैं। ‘सर्न’ के प्रयोग का मुख्य उद्देश्य है एक महत्वपूर्ण कण ‘हिग्ज बॉसॉन’ की खोज करना और अब तक के संकेत बताते हैं कि ‘हिग्ज बॉसॉन’ के मिलने की संभावना बहुत कम हो गई है। अगर हिग्ज बॉसॉन की अनुपस्थिति प्रमाणित हो गई, तो भी भौतिकी के वर्तमान नियम उलट-पुलट जाएंगे।
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1930 में एक ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक होल्फगॉन्ग पॉली ने न्यूट्रिनो नामक एक घोस्ट पार्टिकल्स यानि भूतिया अणु के अस्तित्व का अनुमान लगाया था। इसकी गति इतनी तेज होती है कि हर पल इसके अरबों-खरबों कण हमारे शरीर को आर-पार करते हुए ब्रह्मांड की सैर पर निकल जाते हैं। इनके लिए हमारे शरीर का मानो कोई अस्तित्व ही न हो। हर पल ऐसा खरबों (लगभग पांच खरब) न्यूट्रिनो कण हमारे शरीर के प्रतिवर्ग सेंटीमीटर हिस्से में प्रवेश कर पल भर में शरीर के दूसरे छोर से निकल जाया करते हैं। ये तीर इतने सूक्ष्म होते हैं और इसका इतना अधिक वेग होता है कि हमें इनके आने-जाने का कुछ पता ही नहीं चलता। इसीलिए इसे गॉड पार्टिकल्स या ईश्वर अणु भी कहा जाता है। बहरहाल, इसे जानने के प्रयास में दुनिया भर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं।
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लंबे समय से भारत में भी न्यूट्रिनो को लेकर शोध कार्य चल रहे हैं। इस शोध का सेहरा भारत के सिर बंध सकता था। लेकिन यह बड़े दुख की बात है कि ऐसा नहीं हुआ। मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) के वैज्ञानिक नवकुमार मंडल पिछले दिनों कोलकाता आए हुए थे। उस समय उन्होंने दावा किया था कि इसकी शिनाख्त सबसे पहले भारत के कर्नाटक स्थित कोलार के सोने की खदान में ही हुई थी। पिछले बीस वर्षों से केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के कारण इंडिया बेस्ड न्यूट्रिनो ऑब्जवेटरी (आईएनओ) का कार्यान्वयन अधर में लटका हुआ है। भारत सरकार की अदूरदर्शिता तथा लापरवाही की वजह से न्यूट्रिनो की शिनाख्त के शोधकार्य में अगुवा रहने के बावजूद भारत पिछड़ गया।
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1950 के दशक में ही महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने अपने अ‍धीनस्थ शोधकर्ता वीवी श्रीकांतन को कोलार खदान के नीचे शोधकार्य के लिए भेजा था। जमीन के नीचे विभिन्न गहराइयों में म्युअन नामक कणों की उपस्थिति की मात्रा कितनी है, यही मापने का जिम्मा श्रीकांतन को सौंपा गया था। इस दौरान श्रीकांतन तथा उनके साथियों को इस बात का आभास हुआ कि जमीन के नीचे कई किलो मीटर की गरहाई न्यूट्रिनो पर शोध के लिए उत्कृष्ट स्थान है। 1965 में वहां न्यूट्रिनो पर अनुसंधान शुरू हुआ। श्रीकांतन, एकजीके मेनन और वीएस नरसिंह्म जैसे भारतीय वैज्ञानिकों के साथ ओसाका विश्वविद्यालय और डरहम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी शामिल हुए। ब्रह्मांड में चक्कर लगानेवाले सूक्ष्म न्यूट्रिनो कणों को पहली बार यहीं पहचाना गया।
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वैज्ञानिकों के अनुसार इस ब्रह्मांड में न्यूट्रिनो प्रकाश की गति के लिए चुनौती है। उनका कहना है कि अगर प्रकाश की गति सबसे तेज नहीं है तो यह पूरा मामला पलट जाएगा। कार्य-कारण का संबंध टूट जाएगा। पहले कार्य होगा और तब कारण होगा। पहले मौत होगी, इसके बाद बंदूक से गोली चलेगी। आया कुछ समझ में? यह मामला बड़ा जटिल है। सर्न के वैज्ञानिकों की माने तो आज का तथ्य हम बीते कल में भेज सकते हैं। हो गया न भेजा फ्राई! विज्ञान कथा में टाइम मशीन का जिक्र है, जिसे हम सबने कभी न कभी पढ़ा है। विज्ञान कथा की यह अवधारणा क्या अब सच होनेवाली है

If cause-effect relation breaks and effect happens before cause then is biggest discovery to understand science, it means we are doing nothing and everything is fixed/predecided. future is fixed. We are happen to do certailn things.

OR As per theories of parallel universe given by Michio Kaku there are several infinite universes and for each cause/effect there are infinite possibilities and happens in infinite universe.

OR As in Hindu Culture -
Brhmaji is created each person with certain cause as per rules of Nature, eg. God Shri Ram has to fight with Ravan and it is predecided by law maker of World Brhmaji, shri Ramji has to face exile for 14 years and to give his kingdom to Bharat. It is predecided.
But we  can't take these as evidences as per law of science.And we have to explore this world with new possibilities.












































Sunday, October 2, 2011

Breakthrough News - Faster-Than-Light-(FTL)-Particles-Discovered- CERN

New Breakthrough News
Faster-Than-Light-(FTL)-Particles-Discovered-
Neutrinos Breaking Cosmic Speed of Limit Detected, Says CERN
Is Einstein was wrong ?

However when Newton discovered gravity and gives theories to understand universe. After that Einstein gives some more clarity through Special Theory of Relativity.
It might be possible that some more things to be added to understand - Universe and its working.

Is Time Travel Possible Now ?
Is making of Time machine possible ?

However Scientist community believe that in this experiment, Some error may be possible in its measurement.

And results of this experiment again under check and this experiment repeat for errors.Its result shown to world scientist community/ people of interst.

If result is true and faster than light (FTL) particle travelling possible then whole understanding about Universe is changed.
Time travelling possible in reality, which is scene in Sci-fi movies






क्या अब समय यात्रा संभव हो जाएगी ?


क्या भोतिकी के नियम बदल जायेंगे ?


क्या आइन्स्टीन सही नहीं थे ?


क्या हम भूत और भविष्य को बदल सकते हैं ? या मिचिओ काकू के अनुसार समान्तर ब्रह्मांड में यात्रा कर सकेंगे ?
 
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जेनेवा में स्थित भौतिकी की दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न में वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने सबएटॉमिक पार्टिकल यानी अतिसूक्ष्म कण न्यूट्रिनो की गति प्रकाश की गति से भी ज़्यादा पाई है.
 
अगर ऐसा सच हुआ तो ये भौतिकी के मूलभूति नियमों को पलटने वाली खोज होगी क्योंकि उसके मुताबिक़ प्रकाश की गति से ज़्यादा तेज़ कुछ भी नहीं है.



सर्न से 732 किलोमीटर दूर स्थित ग्रैन सासो प्रयोगशाला को भेजे गए न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से एक सेकेंड के बहुत ही छोटे हिस्से से तेज़ पाए गए.


शोधकर्ता स्वीकार कर रहे हैं कि वे इस नतीजे से काफ़ी आश्चर्यचकित हैं और इसीलिए उन्होंने कोई दावा नहीं करते हुए अन्य लोगों से स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि करने की अपील की है.

इन शोधकर्ताओं के गुट ने कहा है कि वे इस दावे को लेकर काफ़ी सावधानी बरत रहे हैं.


Sunday, September 18, 2011

Einstein General Theory of Relativity - Space Time, Wormhole, Singlarity

विज्ञान की अजीब व्याख्याएँ ( Incredible Amazing Space Time , Time Traveling, Creation of Universe)

आइन्स्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (General Theory of Relativity) विज्ञान के चमत्कारिक सिद्धांतों में से एक है। और चीजों को देखने का हमारा नज़रिया पूरी तरह बदल देती है। इस थ्योरी को समझना हालांकि अत्यन्त मुश्किल है, फिर भी इस लेख के द्वारा कुछ समझने की कोशिश करते हैं।



लगभग चार सौ साल पहले न्यूटन ने गिरते हुए सेब को देखकर एक महत्वपूर्ण खोज की थी जिसका नाम है गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त। इस सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड में पदार्थिक पिण्ड एक दूसरे को अत्यन्त हल्के बल से खींचते हैं। इस बल को नाम दिया गया गुरुत्वाकर्षण बल। इसी बल के कारण हम धरती पर अपने कदम जमा पाते हैं। और यही बल ज़मीन को सूर्य के चारों ओर घुमाने के लिये लिये जिम्मेदार होता है। ब्रह्माण्ड में मौजूद हर पिण्ड गुरुत्वीय बलों के अधीन होकर गति कर रहा है। बाद में हुई कुछ और खोजों से मालूम हुआ है कि रौशनी भी गुरुत्वीय बल के कारण अपने पथ से भटक जाती है। और कभी कभी तो इतनी भटकती है कि उसकी दिशा घूमकर वही हो जाती है जिस दिशा से वह चली थी। इन तथ्यों की रौशनी में जब आइंस्टीन ने ब्रह्माण्ड का अध्ययन किया तो उसकी एक बिल्कुल नयी शक्ल निकलकर सामने आयी।
कल्पना कीजिए एक ऐसे बिन्दु की जिसके आसपास कुछ नहीं है। यहां तक कि उसके आसपास जगह भी नहीं है। ही उस बिन्दु पर बाहर से कोई बल आकर्षण या प्रतिकर्षण का लग रहा है। फिर उस बिन्दु में विस्फोट होता है और वह कई भागों में बंट जाता है। निश्चित ही ये भाग एक दूसरे से दूर जाने लगेंगे। और इसके लिये ये जगह को भी खुद से पैदा करेंगे। जो किसी ऐसे गोले के आकार में होनी चाहिए जो गुब्बारे की तरह लगातार फैल रहा है। और इसके अन्दर मौजूद सभी भाग विस्फोट हुए बिन्दु से बाहर की ओर सीढ़ी रेखा में चलते जायेंगे। किन्तु अगर ये भाग एक दूसरे को परस्पर किसी कमजोर बल द्वारा आकर्षित करें? तो फिर इनके एक दूसरे से दूर जाने की दिशा इनके आकर्षण बल पर भी निर्भर करने लगेगी। फिर इनकी गति सीढ़ी रेखा में नहीं रह जायेगी। अगर इन बिन्दुओं के समूह को आकाश माना जाये तो यह आकाश सीधा  होकर वक्र (कर्व) होगा  

हमारा यूनिवर्स भी कुछ इसी तरह का है जिसमें तारे मंदाकिनियां और दूसरे आकाशीय पिंड बिन्दुओं के रूप में मौजूद हैं। एक बिन्दुवत अत्यन्त गर्म सघन पिण्ड के विस्फोट द्वारा यह यह असंख्य बिन्दुओं में विभाजित हुआ जो आज के सितारे, ग्रह उपग्रह हैं। ये सब एक दूसरे को अपने अपने गुरुत्वीय बलों से आकर्षित कर रहे हैं। जो स्पेस में कहीं पर कम है तो कहीं अत्यन्त अधिक। आइंन्स्टीन का सिद्धान्त गुरुत्वीय बलों की उत्पत्ति की भी व्याख्या करता है।
 


अब अपनी कल्पना को और आगे बढ़ाते हुए मान लीजिए कि विस्फोट के बाद पैदा हुए असंख्य बिन्दुओं में से एक पर कोई व्यक्ति (आब्जर्वर) मौजूद है। अब वह दूसरे बिन्दुओं को जब गति करते हुए देखता है तो उसे उन बिन्दुओं की गति का पथ जो भी दिखाई देगा वह निर्भर करेगा उन सभी बिन्दुओं की गतियों पर, और उन गतियों द्वारा बदलते उनके आकर्षण बलों पर (क्योंकि यह बल दूरी पर निर्भर करता है।) अगर इसमें यह तथ्य भी जोड़ दिया जाये कि प्रकाश रेखा जो कि उन बिन्दुओं के दिखाई देने का एकमात्र स्रोत है वह भी आकाश में मौजूद आकर्षण बलों द्वारा अपने पथ से भटक जाती है तो चीजों के दिखाई देने का मामला और जटिल हो जाता है।
 

इस तरह की चमत्कारिक निष्कर्षों तक हमें ले जाती है आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी। आइंस्टीन ने अपने सिद्धान्त को एक समीकरण द्वारा व्यक्त किया जिसका हल एक लम्बे समय तक गणितज्ञों और भौतिकविदों के लिये चुनौती बना रहा। बाद में शिवर्ज़चाइल्ड नामक वैज्ञानिक ने पहली बार इसका निश्चित हल प्राप्त करने में सफलता पाई।

आइंस्टीन की समीकरणों को हल करने पर कुछ अनोखी चीज़ें सामने आती हैं। जैसे कि सिंगुलैरिटी, ब्लैक होल्स और वार्म होल्स।
गुरुत्वीय क्षेत्रों में प्रकाश की चाल धीमी हो जाती है। यानि वक्त की रफ्तार भी धीमी हो जाती है।
दिक्‌-काल (स्पेस टाइम) बताता है कि पदार्थ को कैसे गति करनी है और पदार्थ दिक्‌-काल को बताता है कि उसे कैसे कर्व होना (मुड़ना) है।
वर्तमान में आइंस्टीन की समीकरणों के कई हल मौजूद है जिनसे कुछ रोचक तथ्य निकलकर सामने आते हैं। जैसे कि गोडेल यूनिवर्स जिसमें काल यात्रा मुमकिन है। यानि भूतकाल या भविष्यकाल में सफर किया जा सकता है।
अब एक छोटी सी सिचुएशन पर डिस्कस करते हैं। 


संलग्न चित्र पर विचार कीजिए। मान लिया हमारी पृथ्वी से कुछ दूर पर एक तारा स्थित है। उस तारे की रौशनी हम तक दो तरीके से सकती है। एक सीधे  पथ द्वारा। और दूसरी एक भारी पिण्ड से गुजरकर जो किसी और दिशा में जाती हुई तारे की रौशनी को अपनी उच्च ग्रैविटी की वजह से मोड़ कर हमारी पृथ्वी पर भेज देता है। जबकि तारे से आने वाली सीढ़ी रौशनी की किरण एक ब्लैक होल द्वारा रुक जाती है जो कि पृथ्वी और तारे के बीच में मौजूद है। अब पृथ्वी पर मौजूद कोई दर्शक जब उस तारे की दूरी नापेगा तो वह वास्तविक दूरी से बहुत ज्यादा निकल कर आयेगी क्योंकि यह दूरी उस किरण के आधार पर नपी होगी जो पिण्ड द्वारा घूमकर दर्शक तक रही है। जबकि ब्लैक होल के पास से गुजरते हुए उस तारे तक काफी जल्दी पहुंचा जा सकता है। बशर्ते कि इस बात का ध्यान रखा जाये कि ब्लैक होल का दैत्याकार आकर्षण यात्री को अपने लपेटे में ले ले। इस तरह की सिचुएशन ऐसे शोर्ट कट् की संभावना बता रही है जिनसे यूनिवर्स में किसी जगह उम्मीद से कहीं ज्यादा जल्दी पहुंचा जा सकता है। इन शोर्ट कट् को भौतिक जगत में वार्म होल्स (wormholes) के नाम से जाना जाता है।

ये एक आसान सी सिचुएशन की बात हुई। स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब हम देखते हैं कि पृथ्वी, पिण्ड, तारा, ब्लैक होल सभी अपने अपने पथ पर गतिमान हैं। ऐसे में कोई निष्कर्ष निकाल पाना निहायत मुश्किल हो जाता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड के रहस्यों की व्याख्या करने के लिये बनी आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी बहुत से नये रहस्यों को पैदा करती है।

Source: http://sb.samwaad.com/2010/08/theory-of-relativity.html ( Science Bloggers)
Other conributions /source /refernces : cosmotography.com , journalofcosmology.com
, zamandayolculuk.com